Thursday, January 29, 2009

संभलो ए फिजाओं ..........

चंद्र मोहन से चांद मोहम्मद हुए, अपनी प्रेमिका को फिज़ा का नाम दिया..प्यार मोहब्बत की कसमें खाई.. घरबार छोड़ा, पत्नी से नाता तोड़ा .कुर्सी से हटाये गये ,जायदाद से बेदखल हुये.. फिज़ा के लिये .. और फिर फिज़ा को छोड़ कर लापता हो गये। फिज़ा ने खुदकुशी की कोशिश की..एक हवलदार की गोद में अस्पताल तक पहुची।चांद दिखता है खुले आकाश में, फिज़ा उसको ज्यादादेर तक छुपा कर नहीं रख सकती है ... ये हक़कीत है ..जिसे न जाने क्यों फिज़ा भूल गई और हम टीवी वालों को याद न रहा ... इस कहानी पर थोड़ी देर में आयेगें..अभी तवारिखों के पन्नों को पलट कर कुछ समझने के लिये थोड़ा पीछे चलते हैं ..धर्मेन्द्र और हेमा की शादी की तरफ...इन्होने भी इस्लाम कबूल कर शादी की ..दो बेटियों को जन्म दिया .. पर धर्मेन्द्र अपने पुराने परिवार के पास वापस चला गया..हेमा आज कुछ भी कहे अपने सम्मान मे कसीदे पढ़े धर्मेन्द्र को सर आंखों में बिठायें पर कहीं न कहीं वो अपने को ठगा महसूस करती होगीं..आज जब भी उनके और धर्मेन्द्र का ज़िक्र आता है तो साथ ही एक लम्बी कहानी ..सब को सुनाई जाती है ..। जिस धर्म के तहत शादी की वो महज़ब छो़ड़ दिया ..तो उन बच्चों को क्या कहेगें जो उन दोनो से हुए.. जायज़ या नाजायाज़।पहेली बात इस्लाम कबूल करना इतना आसान नहीं होता और दूसरा छोड़ना तो नामुमकिन होता है .. धर्म है दुकान नहीं है .जब चाहो आजाऊ जब चाहो चले जाऊ..आईये फिज़ा की बात करते हैं..चांद को भी देखा लोगो ने और फिज़ा को भी कहीं से दोनो का कोई मेल नही था ..जो मेल था वो इतना की एक के पास दौलत थी और दूसरे का पास सुदरता.. फिर वो ही हुआ जो होता आया है दौलत ने हुसन जीत लिया..एक इतने अच्छे धर्म का ग़लत इस्तमाल कर दोनो दुनिया को दिखाने के लिये एक हो गए..चाहत दोनो की थी ऐश के दोनो तलबदार थे ..कहते हैं गरीब की जोरू सबकी भाभी ..आटे दाल का भाव पता चलते ही मोहब्बत रफू चक्कर हो गई.. कौन फिज़ा और किसका चांद.. चंद्र मोहन था तभी तो फिज़ा मिली ।चांद हुआ तो गरदीश में छुप गया ..फिर चंद्र बनू गा तो फिज़ा क्या रौनक और बहार दो आ जायेगें.. अभी मामला गर्म हैं, रोना पीटना ,इसकी बात, उसकी बात सुनने को मिलेगी पर चांद अपनी सीमा में वापस लौट जायेगा ..हां फिज़ा को छोड़ें गा नही.. हफ्ते,महीने या कुछ दिनों के बात दो तीन दिन के मेहमान के तौर पार आता रहेगा.. फिज़ा भी समझौता कर लेगी और सीमा भी ..क्यों कि चांद पर तो सब का हक़ होता है ..इस बात को बताने का मतलब ये है कि कोई और फिज़ा बनने से पहले अंजाम को सोच ले..प्यार,इशक, टीवा में इंट्रव्यू देने के लिये सही है पर हक़कीत में बहुत दर्द है ..अंत में ये ही कहूंगा ऐ फिज़ाओं संभल जाऊ......

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