Monday, February 2, 2009

लो कर दिया दो कदम और पीछे .........................

कांग्रेस सरकार में कुछ मंत्री हमेशा चर्चा में रहे। शिवराज पाटिल नामक शख्स जो अब चले गये हैं, रामादौस जिन्होंने एम्स को बीमार कर रखा है और तीसरे हैं अर्जुन सिंह। समझ में नहीं आता कि चाहते क्या हैं। आरक्षण नाम की बैसाखी तो इन्होंने पहले ही हाथों में दे रखी है। जो सीटें आरक्षित होती हैं वे दाखिले की प्रक्रिया पूरी होने के बाद भी नहीं भरती। फिर भी उन्हें बढ़ा दिया गया वो भी जाति के नाम पर। आर्थिक आधार होता तो समझ भी आता। आंध्र में सीटें बाँटी जाती हैं धर्म के नाम पर। फिर भी सरकार अपने को सेक्युलर कहती है। सुप्रीम कोर्ट कहता है कि बची सीटें जनरल छात्रों को दी जायें तो उस पर अमल नहीं होता, उलटा कोर्ट को अपनी हद में रहने की सलाह दी जाती है। खैर अभी मामला आरक्षण का नहीं। मानव संसाधन मंत्रालय कुछ और ही करने की तैयारी में जुटा है। देश भर में जितने मदरसे हैं उनसे पढ़े गये छात्र वही दर्जा पायेंगे जो सी.बी.एस.ई. से उत्तीर्ण छात्र पाते हैं। कहने का मतलब ये कि मेहनत करने की, रात भर जागने की जरूरत नहीं है। कारण बताया गया है कि मुस्लिम छात्र भी आम छात्रों की तरह आगे आ पायेंगे। आपको मदरसों से भी वही सर्टिफिकेट मिलेगा जो आम स्कूल से पास करने पर मिलता है।इसमें कोई दोराय नहीं है कि इस देश में मुसलमानों का फायदा उठाया गया हैयदि ऐसा न होता तो आजादी के ६० बरस बाद भी शिक्षा के मामले में पिछड़े न कहलाते। वे शिक्षा के मामले में पिछड़े हैं इसमें भी किसी को कोई शक नहीं होना चाहिये। लेकिन सर्टिफिकेट बाँटे जाने का तरीका ठीक नहीं। सरकार चाहे तो मुस्लिम बहुल इलाकों में स्कूलों की तादाद बढ़ा सकती है। उन्हें जागरूक कर सकती है। मुझे नहीं पता और न ही लगता है कि मदरसों में वही पढ़ाई होती है जो कि बोर्ड करवाता है। इस तरह से हम उन्हें और भी कमजोर कर देंगे। वे बोर्ड से पास हुए छात्र के बराबर दर्जा तो पा लेंगे पर पढ़ाई में फिर भी पिछड़ जायेंगे। गलत तरीके से फायदा उठा कर पहले से ही त्रस्त समुदाय के वोट माँगने में ये सरकार कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती तीन विश्वविद्यालयों- जामिया हमदर्द, जामिया मिलिया और अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में स्नातकोत्तर में दाखिले के लिये मदरसों के सर्टिफिकेट मान्य हैं। मानव संसाधन ने यूजीसी को कहा है कि बाकि विश्ववैद्यालयों में भी इसे लागू किया जाये। परन्तु इसका विरोध होने के कारण यूजीसी ने एक कमेटी बैठाने का निर्णय लिया है।आई.आई.टी और आई.आई.एम जैसे संस्थानों में आरक्षण दे कर भारत में शिक्षा के स्तर को मंत्रालय पहले ही गिरा चुका है। कहीं ये कदम भी गलत राह पर न पहुँचा दे।

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