Wednesday, May 27, 2009

तालिबान के पीछे है भारत स्थित 'देवबंद'

तालिबान के पीछे है भारत स्थित 'देवबंद'
इस्लाम के नाम पर अस्तित्व में आए 'पाकिस्तान' के हालत को देख कर भष्मासुर की कहानी याद आती है । वो कहानी आप सबने सुनी होगी । 'एक बार भगवान शंकर ने भष्मासुर को वरदान दे डाला कि जिसके सर पर हाथ रखेगा वह भष्म हो जाएगा । बस फ़िर क्या था , भष्मासुर ने वरदान का सबसे पहला प्रयोग शिवजी के ऊपर ही कर डाला । वो तो भला हो विष्णु जी का जिन्होंने मोहिनी रूप के पाश में फांस कर भष्मासुर को उसी वरदान के मध्यम से जला डाला । ' चिंता मत कीजिये ! अति संछिप्त रूप से इस कथा को बताने का उद्देश्य पाक में वर्तमान स्थिति को समझाना था । कहते हैं इतिहास ख़ुद को दुहराता है । सदियों पुरानी ये कहानी पहले भी अमेरिका में अलकायदा द्वारा दुहराई जा चुकी है, हालाँकि तब अमेरिका जल्द ही संभल गया था । लेकिन पाकिस्तान के संभलने की कोई उम्मीद नही दिखती ।पकिस्तान के निर्माताओं ने तो इसकी नीव ही लाखों लोगों के लाश पर रखी थी । अपने जन्म से लेकर अब तक पकिस्तान ने कभी ख़ुद के विकास के बारे में शायद ही सोचा हो । अरे ,सोचेंगे भी तो कैसे भारत का विनाश और दुनिया पर इस्लाम के एक छात्र राज कायम करने के अलावा इन्होने कुछ सोचा ही नही ! प्रकृति ने जब सब को एक नही बनाया फ़िर संसार में एकरूपता कैसे लायी जा सकती है ?विविधता ही तो संसार का नियम है पर ये बातें इनके पल्ले नही पड़ती । वैसे तालिबान के इतिहास को खंगाले तो इनका दोगलापन साफ़ दिखता है । तालिबान की यह विचारधारा, ७३ भागों(फिरकों) में बँट चुके इस्लाम की एक शाखा 'वहाब' से पैदा हुआ है । इतिहास में थोडी बहुत रूचि रखने वाले लोगों को वहाबी आन्दोलन के बारे में पता होगा । तालिबानी विचारधारा के केन्द्र में यही वहाबियों की सोच है जिसका वर्तमान में एक ही केन्द्र समस्त संसार में बचा है और वो है उत्तर प्रदेश का "देवबंद "। अब तालिबान के बारे में और विस्तार से समझने के लिए हमें वहाबियों के बारे में जान लेना चाहिए । वहाबी के अनुसारइस्लाम के अन्य धारा को मानने वाले भी काफिर हैं ।वो जो कहते हैं वही धर्म है ,वही शरियत है । अफ़गानिस्तान का तालिबान हो या पाकिस्तान का इनके कानून 'शरियत' कहीं से भी इस्लाम के अनुरूप नही है ।पकिस्तान में तालिबान का अस्तित्व में आना २००४ में संभव हुआ । अनेक राजनीतिकद्रष्टाओं का ऐसा मानना है कि इसकी गुन्जाईस शुरू से थी वस्तुतः पकिस्तान में तालिबान का उदय और इतनी तेजी से फैलना कोई अनापेक्षित घटना नहीं कही जा सकती । अनेक बार यह सवाल आता है कि ऐसे में भारत की भूमिका क्या होनी चाहिए ? भारत को खुश होने की जरुरत है या दुखी होने की ? जवाब भी वही है , हमें निश्चित तौर पर चिंतित होना चाहिए । बात पाक में तालिबान की उपस्थिति की नहीं है बल्कि हमारी चिंता का विषय पाक का परमाणु संपन्न राष्ट्र होना है । इस्लामाबाद से महज ६०-७० मील की दूरी पर तालिबान का शासन होना इस बात का सबूत है कि पाक-परमाणु हथियारों पर कभी भी कब्जा हो सकता है । भारत और अमेरिका समेत सम्पूर्ण विश्व की चिंता का विषय यही है । इसके अतिरिक्त एक और खतरा जो साफ़ दिख रहा है भविष्य में भारतीय तालिबान के उदय का , परन्तु हम उससे मुह फिराकर बैठे हैं । तालिबान को जन्म देने वाली संस्था "देवबंद " का भारत में होना क्या इस संभावना को जन्म नहीं देती ? दरअसल कहीं भी ऐसी संभावनाएं तब तक रहेगी जब तक साधारण मुसलमान अपने दैनिक व्यवहार में हर समय कुरान , शरियत या मुल्लाओं की तस्दीक़ को न छोड़ दे । और ऐसा मैं नहीं कह रहा बल्कि वर्षों तक संघ को पानी पी-पी कर कोसने वाले , हिन्दू धर्म को गलियां उगलने वाले , सदैव सेकुलर होने का दावा करने वाले , जामिया और अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सम्माननीय श्रीमान राजेंद्र यादव जी कह रहे हैं । अब तो बात माननी पड़ेगी ! क्यों नहीं मानेगे कल तक तो इनकी हर एक बात ब्रह्म वाक्य थी अब क्या हुआ ?राजेंद्र यादव मई २००९ के हंस के सम्पादकीय में लिखते हैं कि ' मैंने चौविस वर्ष हंस में जिस तरह हिन्दू धर्म कि बखिया उधेरी है ,क्या मुसलमान रहते हुए वह संभव था ? नहीं ,मेरा कलम किया हुआ सर कहीं ऊँचे बांस पर लटका 'काफिरों' में अंजाम का खौफ पैदा कर रहा होता !'राजेंद्र यादव उसी सम्पादकीय में कहते हैं , क्या कुरान और शरियत के यही व्याख्याएं हैं जो तालिबानों के दिशा -निर्देश बनते हैं ? क्या शरियत आज की समस्याओं को हल करने के बजाय हमें १४०० साल पीछे के बर्बर कबीलाई समाज में लौटने की मानसिकता नहीं है ? आगे इसी बात को बढाते हुए , कुरान पर सवाल खड़े करते हैं और कहते हैं कि यह कौन सा नियम है जो हम कुरान को लेकर सवाल नहीं उठा सकते , मुहम्मद साहब को लेकर प्रश्न नहीं पूछ सकते ................ क्यूँ वो सवालों कि परिधि से बाहर हैं ? क्या १४०० वर्ष पूर्व दिए गए आदेश अपरिवर्तनीय और अटल सत्य है जो इस वैज्ञानिक युग में सवालो से परे हैं । ?फिलवक्त , पाकिस्तानी तालिबान के बढ़ते प्रभाव और भारत में उदय की आशंकाओं के बीच इस्लाम व शरियत में परिवर्तन को लेकर आवाज बुलंद होनी शुरू हो गयी है । आगे इसका क्या हश्र होगा , क्या हमारे यहाँ के धर्मान्ध मुल्लाओं और वोट बैंक के पुजारिओं के पल्ले इस परिवर्तन की जरुरत समझ आएगी या नहीं ? यह तो भविष्य के गर्त में हैं । हम तो अच्छे की उम्मीद ही कर सकते है और नेताओं को सलाह दे सकते हैं कि कृपा कर इस मुद्दे पर ओबामा की ओर न देखें तथा कुछ कड़े कदम उठायें ! ध्यान रहे राजीव गाँधी की तरह मुस्लिम समाज के वोट का भय न सताए वरना जल्द ही निकट भविष्य में भारतीय तालिबान का अस्तित्व में आना तय है ।

Monday, May 4, 2009

जामिया में ABVP की शाखा का खुलना एक ऐतिहासिक घटना

JAMIA MILLIA ISLAMIA में अपनी जान और कैरियर की परवाह न करते हुए आज हमारे साथ २०० से अधिक कार्यकर्त्ता कम कर रहे हैं । भारतीय इतिहास में पहली बार जामिया जैसे जगह जहाँ पर खुले आम लोकतंत्र की हत्या की जाती हो ,वहां अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की शाखा खुलना और महज एक साल के अंदर इतनी सदस्य संख्या तक पहुंचना एक क्रान्तिकारी घटना साबित होगी । कहते हैं न जल में रहकर मगर से बैर " वाली कहावत को हमारे जोशीले देशभक्त युवा कार्यकर्ताओं ने सच कर दिखाया है । पहली इकाई की बैठक में ४० लोगों की उपस्थिति मेरे लिए एक सुखद अहसास था । आख़िर मेरी मेहनत का फल था भाई ! अभी कुछ दिन ही बीते थे की अचानक बतला हाउस में आतंकियों के इन्कोउन्टर की घटना घटी । हमारे कुलपति मुशीरुल-हसन ने पकड़े गए आतंकियों को कानूनी मदद मुहैया कराने की घोसना की , तब हमने फ़ैसला किया विरोध का ।२५ सितम्बर ०८ जामिया में मुशीरुल हसन द्वारा आतंकियों के समर्थन में करीब ४ -५ हजार स्थानीय मुस्लिमो और छात्रों की भीड़ थी । हम भी खड़े थे बांकी बहरी लोगों के इन्तेजार में , तब हमारी संख्या भी लगभग ५० की थी लेकिन डी यु और अन्य जगहों से करीब ३२-३३ लोगों के पहुँचने तक १२ -१३ लोग बचे थे । हमने भी जम कर विरोध परदरशन किया और गिरफ्तारियां भी दी। कुल मिलकर इस घटना के बाद से जामिया में विद्यार्थी परिषद् के अस्तित्व का पता सब को चल गया है । अब हमें उम्मीद है आने वाले सत्र में और भी राष्ट्रप्रेमी हमसे जुडेंगे और हमारी इस वैचारिक लडाई को आगे ले जायेंगे । अंत में मुझे गर्व है जामिया इकाई के संथापक सदस्य होने का । जय हिंद ! वंदे मातरम ! भारत माता की जय !

R.S.S : A SOCIO -CULTURAL ORG.

आज कल जहाँ देखो संघ के खिलाफ खूब जहर उगला जा रहा है । नई पीढी के समक्ष संघ को फासीवादी और नाजीवादी सोच का बताया जा रहा है । । एक विवादित ढांचे और गुजरात दंगों का आरोप संघ परिवार पर लगा कर उसको सांप्रदायिक होने का सर्टिफिकेट दे दिया जाता है । वही बुद्धिजीवी और मीडिया संघ के हजारों समाजसेवा के कार्य को नजरंदाज करती रही है । संघ के सम्बन्ध में सदी के सबसे बड़े धर्मनिरपेक्ष नेता और हमारे बापू "महात्मा गाँधी जी " जिनकी हत्या का आरोप भी संघ पर लगा था , ने १६- ०९- १९४७ में भंगी कोलोनी दिल्ली में कहा था -" कुछ वर्ष पूर्व ,जब संघ के संस्थापक जीवित थे , आपके शिविर में गया था आपके अनुशासन , अस्पृश्यता का अभाव और कठोर , सादगीपूर्ण जीवन देखकर काफी प्रभावित हुआ । सेवा और स्वार्थ त्याग के उच्च आदर्श से प्रेरित कोई भी संगठन दिन-प्रतिदिन अधिक शक्ति वान हुए बिना नही रहेगा । "

बाबा साहब अम्बेडकर ने मई १९३९ में पुणे के संघ शिविर में कहा था - "अपने पास के स्वयं -सेवकों की जाति को जानने की उत्सुकता तक नही रखकर , परिपूर्ण समानता और भ्रातृत्व के साथ यहाँ व्यवहार करने वाले स्वयंसेवकों कोदेख कर मुझे आश्चर्य होता है । "
संघ के सन्दर्भ में एक अन्य घटना की जानकारी मुझे मिली थी जब मैं भी बगैर सोचे-विचारे संघियों को कट्टरपंथी बोला करता था । उस घटना का जिक्र आप के समक्ष कर रहा हूँ - ' सन १९६२ में चीन ने हिन्दी-चीनी भाई के नारे को ठेंगा दिखाते हुए भारत पर हमला कर दिया । भारत को अब किसी युद्ध में जाने की जरुरत नही है सेना का कम तो बस परेड में भाग लेना भर है की नेहरूवादी सोच के कारण सेना लडाई के लिए तैयार नही थी । तब तुंरत ही स्वयंसेवक मैदान में कूद गए । सेना के जवानों के लिए जी जन से समर्थन जुटाया वहीँ भारतीय मजदूर संघ ( ये भी संघ का प्रकल्प है) ने कम्युनिस्ट यूनियनों के एक बड़वार्ग्ग की रक्षा उत्पादन बंद करने की देशद्रोही साजिश को समाप्त किया । तब प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू संघ के कार्य से इतने प्रभावित हुए की कांग्रेसी विरोध को दरकिनार करते हुए २६ जनवरी १९६३ की गणतंत्र दिवस परेड में सम्मिलित होने का निमंत्रण दिया ।"
अन्य दो -तीन उल्लेखनीय सेवा कार्य जो मेरी स्मृति में है - *१९७९ के अगस्त माह में गुजरात के मच्छु बाँध टूटने से आई बाढ़ से मौरवी जलमग्न हो गया था । संघ के सेवा शिविर में ४००० मुसलमानों ने रोजे रखे थे । अटल जी जब वहां गए थे तो मुसलमानों ने कहा था -'अगर संघ नही होता तो हम जिन्दा नही बचते ।
'*१२ नवम्बर १९९६ चर्खादादरी , दो मुस्लिम देशों के यात्री विमानों का टकराना , ३१२ की मौत जिसमे अधिकांश मुस्लिम और भिवानी के स्वयंसेवकों का तुंरत घटना स्थल पर पहुंचना , मलवे से शव निकलना सारी सहायता उपलब्ध करना । इतना ही नही शवों के उचित रीति रिवाज से उनके धर्मानुसार अन्तिम संस्कार का इन्तेजाम करना । तब साउदी अरेबिया के एक समाचारपत्र 'अलरियद ' ने आर एस एस लिखा था- " हमारा भ्रम कि संघ मुस्लिम विरोधी है, दूर हो गया है । " अभी तक के लिए इतना ही आगे अगले भाग में .....................................................................................