Thursday, April 16, 2009

भारतीय राजनीति का यक्ष प्रश्न ...........



राहुल गाँधी की युवा ब्रिगेड( भलेही राजनीती में उनका प्रवेश अनुकम्पा के आधार पर हुआ हो ) से मुकाबला करने वाले कौन हैं ? यह भाजपा से लेकर तमाम दलों के लिए यक्ष प्रश्न बना हुआ है ।लेकिन इस सवाल का जबाब ढूंढने के बजायसभी इधर -उधर की बेकार दलील देकर ताल -मटोल करते नज़र आते हैं । इसी सवाल पर बहस के दौरान दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक छात्र नेता ने तर्क देते हुए युवा की जगह अनुभव को तरजीह देने की बात कही । कुछ अन्य युवा नेताओं ने उनकी बात का विरोध किया तो वो मुद्दे से भटक कर विचारधारा और हिंदुत्वा को परिभाषित करने लगे । अपनी आधी -अधूरी जानकारी और थोड़े बहुत महापुरुषों के कथन को तोड़- मरोड़ कर लगे भाषण देने । अभी टीवी में राजनाथ जी की भूलने की गाथा देख रहा था जिसमे वो यूपीए की जगह एनडीए , एनडीए की जगह यूपीए का नाम ले रहे थे । क्या यह घटना इनके खोखले युवापन के दावे को नही झुठलाती ?क्या भाजपा को युवाओं को आगे लाने की बात पर गंभीरता से सोच कर अमल करने की आवश्यकता नही है? क्या नरेन्द्र मोदी को अपनी महत्वाकांक्षा की आड़ में रोक कर युवा ब्रिगेड को पाँच साल पीछे नही कर दिया गया ?संगठन में तो वैसे भी ४० पार होने पर युवा की पदवी दी जाती है । ४६ वर्षीय राजीव प्रताप रुढी ,४० -४२ साल के सहनवाज हुसैन , आदि अधेड़ नेता युवाओं की श्रेणी में गिने जाते हैं । खैर इस लोकसभा की बात जाने दीजिये , अगले लोकसभा तक भी राहुल की फौज को टक्कर देने की कोई उम्मीद नही आती । जिस चीज को भाजपा की विशेषता मन जाता था आज वही बात ख़त्म हो रही है । विचारधारा और सुचिता को लेकर तटस्थ होने का दावा करने वाली बीजेपी आज अपने हीं उठाये गए सवालों से घिर गई है । पार्टी का सत्ता प्रेम उबाल कुछ इस कदर मार रहा है कि अपने कैडरों को भी भूलना जायज हो गया है। कुछ ही समय बीते विधानसभा चुनावों मे पार्टी ने दलबदलुओं को जम कर टिकट बाटने का काम किया । सालो तक पार्टी का झंडा उठाने वाले समर्पित कार्य कर्ताओं कि जगह अन्य दलों से बहलाफुसला कर आयातित नेताओ को तरजीह देने से दिनों-दिन कार्यकर्ताओं मे आक्रोश पैदा होना जायज़ है । आंकड़ों पर गौर करे तो ऐसे बाहरी नेताओं कीसंख्या काफी है।युवा नेतृत्व से जी चुराने की बात पर भाजपा के अन्दर भी काफी उथल-पुथल चल रहा है । कुछ लोग तो यहाँ तक कयास लगा रहे हैं कि लोक सभा चुनाव बाद पार्टी दो भागो में बट जायेगी । पार्टी में युवाओं की कमी तो है ही साथं ही रही रही-सही कसार ऊपर के लोगों द्वारा युवाओं की उपेक्षा से पुरी हो जाती है । पहले आर एस एस की विभिन्न सखाओं और परिषद् से विचारधारा के पक्के और पढ़े लिखे युवाओं की इंट्री युवा मोर्चा और भाजपा में हुआ करती थी । परिषद् हो या आर एस एस उनकी हालत आज खस्ता हाल है । इन सब के बावजूद जो थोड़े बहुत युवा यहाँ अपनी जगह तलाशने आते हैं अथवा यूँ ही कहें कि उनके पास कहीं और जाने का विकल्प नही होता , उनको युवा मोर्चे तक में पूछने वाला कोई नही ! परिषद् का परिचय देने पर बड़ी ही दयनीय भाव से देखता हुआ कोई भी ऐरा -गैर सलाह देने लग जाता है ।यह तो मेरे अनुभव हैं जो मैंने अपने आस पास देखा है । अब , आम चुनावों का नतीजा चाहे जो भी हो , अनुभव की बात कह कह कर कब तक युवा नेतृत्वा से जी चुरायेगी भाजपा ?

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