Friday, July 3, 2009

राष्ट्रगान साम्प्रदायिकता और संकीर्णता से भरा है :राजेन्द्र यादव

हमारे कई पाठकों ने वंदे मातरम् गीत के बारे में जानना चाहा है कि इसका इतिहास क्या है और यह पूरा गीत कहाँ उपलब्ध होगा। हम यहाँ पूरा गीत उपलब्ध करा रहे हैं, साथ ही यह भी बता देना चाहते हैं कि इस गीत को पूरा गाने पर इसलिए रोक लगा दी थी कि कतिपय राष्ट्रविरोधी ताकतों को यह गीत अधार्मिक और उनकी धार्मिक भावनाओं के खिलाफ लग रहा था। इस गीत में लाल रंग में दी गई पंक्तियों को राष्ट्र विरोधी मान लिया गया था, अब यह आप ही फैसला करें कि इन पंक्तियों में ऐसा क्या है जिसके गाने से देश की एकता और अखंडता को हानि पहुँच रही थी। इस देश में जब तक ऐसी सरकारें मौजूद रहेगी, जो राष्ट्र भक्ति से ओत-प्रोत गीत को ही राष्ट्र विरोधी मानेगी तो फिर इस देश को आतंकवाद और राष्ट्र विरोधी शक्तियों से कोई नहीं बचा सकता।इस विषय पर मध्य प्रदेश के जन संपर्क आयुक्त एवं वरिष्ठ आयएएस अधिकारी श्री मनोज श्रीवास्तव का एक खोजपरक लेख भी हमें मिला है, जिसमें उन्होंने दुनिया भर के कई देशों के राष्ट्रीय गीतों के इतिहास के साथ ही वंदे मातरम् के इतिहास. आज़ादी के पहले से लेकर आज़ादी के बाद तक की इसकी यात्रा और इसके विभिन्न आयामों को प्रामाणिक तथ्यों के साथ सामने लाने की कोशिश की है। हिन्दी में वंदे मातरम् पर इससे बेहतरीन लेख इंटरनेट पर कहीं उपलब्ध नहीं है। हम अपने पाठकों के लिए यह लेख भी साभार प्रस्तुत कर रहे हैं। आज देश को मनोज श्रीवास्तव जैसे आयएएस अधिकारियों की जरुरत है जो अपनी भाषा में राष्ट्रीय हित से जु़ड़े मुद्दों पर चिंतन ही नहीं करते हैं बल्कि उस पर बेबाकी से अपनी कलम भी चलाते हैं।दुनिया के अधिकतर राष्ट्रगीत उस देश के संघर्ष के समय पैदा हुए हैं। चाहे फ्राँस हो या अमेरिका, उनकी उत्पत्ति संकट और संघर्ष के क्षणों में हुई है। स्वयं ब्रिटेन का राष्ट्रगीत जैकोबाइट विद्रोह के दौर की ही देन है। ये कहीं किसी राष्ट्र नायक के इर्द-गिर्द विकसित हुए डेनमार्क, हैती आदि तो कहीं देश के ध्वज के संदर्भ में होंडुरास, संयु राज्य अमेरिका, कहीं ये शुद्ध प्रार्थना है तो कहीं ये शस्त्र उठाने का आव्हान स्पेन, फ्राँस आदि, कहीं ये लोकगीत। दुनिया के हर देश को अपने राष्टर गीत पर नाज़ होता है और वहाँ के लोग उसे गाने मैं गौरव महसूस करते है। हमारे यहा राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान दोनों हैं। मगर अजीब विडंबना है कि हमारे देश में असंदिग्ध सम्मान का अधिकारी वो राष्ट्रगान भी नहीं है, जिसे गुनगुनाना भी औपनिवेशिक राजसत्ता के दौर में एक आपराधिक कृत्य था क्योंकि उसकी स्वर लहरी से साम्राज्यवादियों को नर्वस ब्रेकडाउन हो जाता था। ऐसे अद्भुत राष्ट्रगान के बारे में आइए देखें कि गलतफहमी फैलाने वाले किस हद तक अपने मानसिक दिवालिएपन को उजागर करते हैं।राजेन्द्र यादव जो 'वरिष्ठ साहित्यकार और मासिक पत्रिका 'हंस के संपादक हैं, का कहना है कि 'उनकी यह राष्ट्र वंदना बहुत ही सांप्रदायिक और संकीर्ण मानसिकता वाली है। ऐसी ही मातृभूमि की कल्पना वंदे मातरम्‌ में की गई है जो म्लेच्छों से खाली होगी। इसे नहीं मंजूर किया जा सकता है।दिक्कत यह है कि वंदे मातरम्‌ गाना जिस उपन्यास से लिया गया है, वह मुसलमानों के खिलाफ़ है और अंग्रेजों के भी। इस उपन्यास और इस गाने में अपनी मातृभूमि को म्लेच्छों से खाली कराने का आव्हान किया गया है। यहा म्लेच्छों का संदर्भ बिल्कुल स्पष्ट है। मुसलमानों को म्लेच्छ माना गया है। इस लिहाज से यह बहुत सांप्रदायिक ढंग का गाना है, जिसे नह गाया जाना चाहिए।कहने को तो यह मातृभूमि की वंदना है लेकिन सवाल यह उठता है कि किसकी मातृभूमि और कैसी मातृभूमि? जिस तरह से भारत का राष्ट्रगीत है उसमें सबको शामिल करने की बात कही गई है, लेकिन वंदे मातरम्‌ में देश के एक बड़े समूह को अलग करने की बात कही गई है, इसलिए यह नकारात्मक गाना है।यादव की यह टिप्पणी विचारहीनता और तर्कहीनता का सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधित्व तो करती ही है, तथ्यहीनता को भी स्पष्ट करती है। महोदय ने वंदे मातरम्‌ को पूरा-पूरा पढा भी नह है, यह उनकी इस टीप में कट तथ्य संबंधी त्रुटियों से ही स्पष्ट है।वंदे मातरम्‌ के जिन दो छंदों को राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया है, उनमें न म्लेच्छ शब्द का प्रत्यक्ष या परोक्ष योग है और न म्लेच्छों से देश को खाली कराने के किसी लक्ष्य, इरादे या योजना का। दो छंद तो पूर्णत: विशेषणों से भरपूर हैं : सुजलाम्‌ सुफलाम्‌, मलयज शीतलाम्‌, शस्य श्यामलाम्‌, शुभ्र ज्योत्स्नाम्‌, पुलकित यामिनीम्‌; फुल्लकुसुमित, द्रुमदल शोभिनीम्‌, सुहासिनीम्‌, सुमधुर भाषिणीम्‌; सुखदाम्‌, वरदाम्‌---।इनमें कहाँ हैं म्लेच्छ और उनसे मातृभूमि को खाली कराने के उद्‌गार? यह एक विडंबना ही है कि एक गीत जो औपनिवेशिक शोषण और गुलामी के विरुद्ध सारे भारतीयों को जोड़ने का मूलमंत्र बना, समकालीन स्वतंत्र भारत में 'भड़काने और विभाजित करने के आरोप का शिकार हो रहा है। इस गीत में कौन सी 'नकारात्मकता है?जिन कोटि-कोटि कंठ के कलकल निनाद की बात इस गीत में कही गई है क्या उसमें कोई जातीय या सांप्रदायिक सोच दिखाई देता है? जिन कोटि-कोटि भुजाओं की बात इसमें कही गई है क्या उसमें सिर्फ हिंदुओं की ही भुजाए हैं? 'सांप्रदायिक विभाजन गीत में नहीं, इसके इन वरिष्ठ व्याख्याकारों के दिमाग में है जो एक स्थानांतरण ट्रांस्फेरेंस की मनोरचना मेंटल मैकेनिज्म के चलते इस गीत पर आरोपित किया गया है।

3 comments:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

http://www.sahityashilpi.com/2009/07/blog-post_7048.html

Do see this LINK

Gyan Darpan said...

सांप्रदायिक विभाजन गीत में नहीं, इसके इन वरिष्ठ व्याख्याकारों के दिमाग में है "

बात तो यही सही है |

Anonymous said...

वन्दे मातरम् साम्प्रदायिक नहीं,मातृ भूमि के प्रति सर्वोत्तम सम्मान प्रस्तुती है।
किरण माहेश्वरी